अपनी ही धुन में मग्न
बंजारों के संग
बनकर बहती हवा सा
दिल चाहता है नदी के जल सा बहता ही जाऊँ मैं
कभी दिल कहता है जा सागर से मिल जाऊँ मैं
सच्चे मोती की तलाश में
खुद को पाने की आस में
लहरों पर हो सवार
दिल चाहता है समंदर की गहराइयों को नापू में
कभी दिल कहता है क्षितिज से जा मिल जाऊँ मैं
मंजिल को पाने की प्यास में
पंछी बन उड़ जाऊँ मैं
बादलों पर हो सवार
दिल चाहता है सबसे ऊँची शिखर पर चढ़ जाऊँ मैं
कभी दिल कहता है जीत का पताका लहराऊँ मैं
इतिहास के पन्नों में अपना भी एक नाम हो
एक अलग पहचान हो
बनकर हीरे सा निखरूँ मैं
दिल चाहता है इन सितारों सा चमकूँ मैं
कभी दिल कहता है उस चाँद तले अपनी एक दुनिया बसाऊँ मैं
दिल चाहता है उड़ जाऊँ सपनों के पंख लगाए दूर आसमां में
कभी दिल कहता है कर ले मुझको भी शामिल इस नील गगन में
Superb Rashmi..
Very deep thoughts…
Thanks a lot dear!
Bahut hi shaandaar Kavita likhi hai. Akhri line Sabse achi lagi ?
Bahut bahut dhanyavad Suchita ?
Umeed hai aur baki sab bhi aapko pasand aaye.
Wah wah bahut khoob. Sach me maza aa gya pad ke . Maine bhi is baar hindi poetry ki koshish ki hai.
Is it? Sure, will give it a read. Yeh jaankar bada acha laga ki that you enjoyed reading it.
Hey dear, please share your poetry links. Would love to read.
I can not tell you in words, how much I liked this poem.
It means a lot dear ?
बहुत बढ़िया ???
Thank you Samira for reading!
Beautiful!
Thank you Sonia ?
Lovely ?
Thank you Rashi ?