ना जकड़ इन बेड़ियों में खुद को
तोड़ दे इन सलाखों को
सहनशीलता के चादर तले ना ढक
अपने इन जख्मों को
हुँकारा भरने दे सोए हुए अरमानों को
उड़ जाने दे इन्हें उमंगों के पंख लगा
क्योंकि वक़्त भी है इसी ताक में
कब तेरे वजूद का होगा आमना–सामना इस जग में
तू है अग्नि तू है ज्वाला
क्यों है पिए ग़म का प्याला
समझ ना स्वयं को कमजोर तो
उठा हिम्मत की मशाल तू
बन खुद ही अपनी पतवार तू
दौड़ जा मंजिल के उस पार तू
क्योंकि वक़्त को भी है इंतजार
दे अपने वजूद का कोई तो प्रमाण
तू नहीं है कोई कल्पना
तू है ऊपर वाले की सबसे सुंदर रचना
सुलझाते सुलझाते दुनिया की इस पहेली को
बन एक पहेली खुद में क्यों इतना उलझी है तू
कर खुद पर एक बार एतबार
डर को जीत
हार को कर इंकार
और गौरव से यह सर उठा
क्योंकि वक्त भी करता है इशारा
अब चमका दे अपने वजूद का सितारा
लाजवाब
धन्यवाद!
☺
आजकल हिम्मत से भरपूर कविताएं लिख रहे हो। अच्छा हौंसला है।
Jahan ye jazba le jaye, bas wahin chale ja rahe hain..meri kavitaon ka saath dene ke liye dhanyavad 🙂
Bahut khoob! Shabdon se tareef na kar payenge, Jo honsla apki kavita ne dia hai hum kuch kar dikhayenge
Bahut khoob! Shabdon se tareef an kar payenge, Jo honsla apki kavita me dia hai hum much kar dikhyenge
Kabile tareef hai aapka josh jo humare sabdon mein piroye hue bhavnaon ke sang hi ud chala..dhanyavad 🙂