ग़मगीन नहीं मैं
गमों के बाज़ार में बड़ी नादान सी प्यारी सी छुपकर बैठी थी एक खुशी मेरे करीब आने की आहट सुन मचल उठी वो खुशी गले से लगाया तो छलक उठी…
गमों के बाज़ार में बड़ी नादान सी प्यारी सी छुपकर बैठी थी एक खुशी मेरे करीब आने की आहट सुन मचल उठी वो खुशी गले से लगाया तो छलक उठी…
दूसरों को तकलीफ़ देकर खुश होते हैं चंद लोग गम में देख औरों को फूलों सा खिल उठते हैं कुछ लोग पता नहीं किसी दूजे को सताकर क्या हासिल होता…
अपनी ही धुन में मग्न बंजारों के संग बनकर बहती हवा सा दिल चाहता है नदी के जल सा बहता ही जाऊँ मैं कभी दिल कहता है जा सागर से…
दोस्तों के साथ कब बीता वो सुनहरा बचपन कुछ पता ही ना चला कब दिन निकला कब सांझ ढला कुछ पता ही ना चला हम तो बातों के सैलाब में डूबे…
है देखो घनघोर अँधियारा है छाया मासूम सा दिल है फिर घबराया अमावस का लगता है ये सायां पर डर ना तू इस काली रात से है ये भोर से…
तेरी इमारत से सटी गली में आज़ भी एक भूखा बच्चा रोता है रो रोकर भूखे पेट ही सोता है कुछ कहता नहीं ना ही दर्द अपने ज़ाहिर करता है …
Artwork is done by Revati Saripalli. All rights reserved. Copyright © Revati Saripalli आसमान के भी हैं हज़ारों रंग कभी गहरा नीला तो कभी सूरज की लालिमा सा बिखरा गमगीन…
भाग 1... नारी हूँ नारी मैं किस्मत की मारी नहीं नाम इतने मेरे पर पहचान कहाँ खोया हुआ चाँद, है सर पर आसमान कहाँ बीता वो पतझड़ मैं बसंत बन…
नारी हूँ नारी मैं किस्मत की मारी नहीं हर घर की कहानी हूँ मैं दरिया की रवानी हूँ मैं मैं सम्मान हूँ तेरे निकेतन की मैं रौनक़ हूँ तेरे आँगन…
ज़िंदगी के पन्नों को जब पलटकर देखा चंद लम्हों में खुद को सिमटे हुए देखा ये दास्तान भी कितनी अजीब है कभी फूलों का गुलशन तो कभी पतझड़ का मौसम…