दोस्ती – एक अनोखा रिश्ता

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दोस्तों के साथ कब बीता वो सुनहरा बचपन

कुछ पता ही ना चला 

कब दिन निकला कब सांझ ढला 

कुछ पता ही ना चला

हम तो बातों के सैलाब में डूबे रहा करते थे

बिन बोले एहसासों की चिट्ठी पढ़ लिया करते थे

दिल खोल हँस लिया करते थे

गम में भी

सीने से लग रो पड़ा करते थे

बीता वह बचपन का मौसम

पर कुछ दोस्त पुराने आज़ भी बहुत याद आते हैं

कभी यादों में तो कभी बातों में

लौट आते हैं फिर मेरे जज़्बातों में

दिल की सुनी गलियों को गुलशन सा महकाते हैं

कुछ दोस्त पुराने आज भी बहुत याद आते हैं

 

एक वक्त था

दोस्तों के संग खेला करते थे घंटों आँख मिचोली

अब वक्त ने खेल ऐसा खेला है

बीता एक अरसा

कुछ इस कदर छुप से गए हैं

नैना तरस से गए हैं

पर नजर ना आते वो दोस्त

जो पल भर के लिए भी ना होते थे आँखों से ओझल 

बरसों से ना रूबरू हुए वो दोस्त

पर दोस्तों दोस्ती वो गुजरा हुआ जमाना नहीं

जो फिर लौट ना आए

दोस्त तो है सायां तेरा

धूप हो या अँधेरा 

छोड़े ना साथ तेरा

हमने भी दोस्तों को सदियों से इस दिल में महफ़ूज़ रखा है

दूरियों को मिलों से नहीं गहराइयों से नाप रखा है

यकीन ना हो तो

अब भी तू लगा कर देख एक पुकार

दौड़ा चला आए ये यार तेरा

दौड़ा चला आए ये यार तेरा

इस भाग दौड़ में

ज़िंदगी की हर मोड़ में

दोस्ती है निभाती एक अनमोल केदार

हर किसी को नहीं मिलता यारों दोस्ती का ख़ज़ाना यहां

हर किसी को नहीं मिलता यारों दोस्ती का ख़ज़ाना यहां

किस्मत वाले होते हैं वह लोग जिनके नसीब में होते हैं कुछ सच्चे दोस्त

किस्मत वाले होते हैं वह लोग जिनके नसीब में होते हैं कुछ सच्चे दोस्त

 

आज बरसों बाद मिले

आँखें थी नम

दोस्त ने गले से लगाया

तो मानो लौट आया वो बचपन

रूठना मनाना

मानकर वो फिर रूठ जाना

याद आया दोस्ती का गुजरा वो जमाना

अजीब दास्तां है ये दोस्ती की दोस्तों

अनोखा सा ये रिश्ता है ये यारों

आज बरसों बाद मिले तो भी

ना थी कच्ची पड़ी ये डोरी

मानो सांसों के तार से बँधी थी ये डोरी

मानो सांसों के तार से बँधी थी ये डोरी

 

तराज़ू में तोला ना जा सके ये वो रिश्ता है

आँखें मूँद हाथ पकड़ संग चल सके ये वो रिश्ता है

आज भी याद है मुझे वो पल

जब बिछड़ने की ऋतू आई

इन भीगी पलकों को बरसने तक ना दिया

कमबख्त यारों ने खुलकर रोने भी ना दिया

दिल को बहुत समझाया यारों

मन को भी बहुत बहलाया

पर दोस्ती ऐसी नज़्म है दोस्तों

जिसे इन साँसों ने बार-बार दोहराया

अब तो बस एक ही आरज़ू है

दोस्तों की महफ़िल में दोस्ती यूं ही जवाँ रहे

मैं रहूँ ना रहूँ पर ये याराना सदाबहार रहे

मैं रहूँ ना रहूँ पर ये याराना सदाबहार रहे

Rashmi Jain

Hi, I'm Rashmi. I'm here to experiment, explore, experience and express life and would like my readers to embark on this journey of Words along with me. Let's believe in the magic of Words.

This Post Has 4 Comments

  1. gunjanmangal

    Tooo Good. Loved the poem.

    1. Rashmi

      Glad that you liked it 🙂
      One of the precious relations to cherish!

  2. Arpita's Thoughts

    Hindi poetry has my heart.. top it up with dosti.. beautifully penned!!

    1. Rashmi

      Glad that you liked it. Thanks a lot Arpita ?

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