कलाकार हूँ मैं
कल को निखार दूंगी
यह वादा है मेरा
अपने कलम की रफ़्तार से
कल को सँवार दूंगी
कहानीकार नहीं कहानी हूँ मैं
दिल में उठते अनगिनत विचारों की लहर हूँ मैं
लेखक द्वारा बुनी एक अद्भुत कल्पना हूँ मैं
बसाए हुए अपनी एक अलग ही दुनिया
रहती हूँ किताबों में यहीं कहीं
जब जी चाहे
कहानी के पात्रों को एक नया नाम दूंगी
बदल किरदार अपना
कल को नया आकार दूंगी
कवि नहीं कविता हूँ मैं
भावनाओं की बहती एक दरिया हूँ मैं
कवि द्वारा रचित एक सुंदर रचना हूँ मैं
इन सुनहरे अक्षरों में बसती है मेरी जान
अल्फाजों की खिड़कियों से झाँक रहे मेरे अरमान
दिल के सारे जज़्बातों को
चंद शब्दों की गहराइयों में डाल
कल को उभार दूंगी
कलाकार हूँ मैं
कल ज़िंदगी को जीने का नया आधार दूंगी
यह वादा है मेरा
अपने कलम की रफ़्तार से
कल को एक नया उपहार दूंगी
You made my day dear!
Sach m kalakar hai Rashmi..
Thank you!
Roz ek sunder kavita likhna,
Apni bhavnaon ko bakhubi vyakt karna,
Tum sach mein kalakar ho ek nagina…
Wah wah..kya khoob kaha aapne! Bahut bahut dhanyavad 🙂
Kalakar to aap hai. You weave magic with your words.
Thanks a lot Sonia!
You made my day 🙂
BEAUTIFUL poem! loved it
Thank you Vidhya!
Beautiful interpretation of “kalakar” with self. Loved the lines.
Thank you for your views!
Bohat hi sunder kavita, kalakar hai aap, kahaniyo me nahi apne alfhazo me rehte ho 🙂
Bahut bahut dhanyavad 🙂
Ek kalakaar hi dusre kalakaar ko parakh sakta hai!
It’s wonderful and I think the best one.Loved it!