ओ मेरे हमसफ़र
माना बहुत लंबा है यह सफर
पर सायां बन संग चलना यूँ ही
तो पल में कट जाए यह सफर
राह में आएँगी मुस्किलें हज़ार
किस्मत बदलेगी करवटें बार बार
पर यूं ही चलना साथ साथ
डाले हाथों में हाथ
कभी ग़म का बादल होगा
कभी छाया अंधेरा गहरा होगा
कभी तन्हाई का मेला होगा
कभी मन यह अकेला होगा
पर प्यार तेरा संग हो तो
हर तूफ़ान का रुख़ बदल देंगे
चार कदम जो तू साथ चल दे मेरे
हर पतझड़ के मौसम को बहारों में बदल देंगे
बस तू ना कभी मुँह मोड़ना
बीच राह में कभी दामन ना छोड़ना
पलकों के आशियाने में सुकून से रहना
लवों पर हमेशा मुस्कान बन खिले रहना
फ़ासले दरमियाँ कभी बढ़ भी जाए
ज़िंदगी कभी अगर थोड़ा और आज़माए
घबराना ना तू
दूरियाँ पल में पिघल जाएंगी
वक्त के साथ
प्यार की गहराई भी थोड़ा और बढ़ जाएगी
ओ मेरे हमसफ़र
माना बहुत लंबा है यह सफर
पर सायां बन संग चलना यूँ ही
तो पल में कट जाए यह सफर
What else one would need apart from such lovely compliments..Thank you.
What else one would need apart from the shower of such lovely compliments?
Very beautifully written. Shared it with my husband and sister. You said everything I would like to tell them
That’s so sweet of you dear ❤
May this journey with your humsafar be full of love and togetherness. Soul touching
Hope the same for everyone. Thanks a lot!
beautiful poem!
One of your best creation.Loved it!!!